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सं पू॑ष॒न्नध्व॑नस्तिर॒ व्यंहो॑ विमुचो नपात् । सक्ष्वा॑ देव॒ प्र ण॑स्पु॒रः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam pūṣann adhvanas tira vy aṁho vimuco napāt | sakṣvā deva pra ṇas puraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम् । पू॒ष॒न् । अध्व॑नः । ति॒र॒ । वि । अंहः॑ । वि॒मु॒चः॒ । न॒पा॒त् । सक्ष्व॑ । दे॒व॒ । प्र । नः॒ । पु॒रः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:42» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बयालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके पहिले मंत्र में प्रवास करते हुए मनुष्य मार्ग में किस-२ पदार्थ की इच्छा करें इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) सब जगत् का पोषण करनेवाले (नपात्) नाश रहित (देव) दिव्य गुण संपन्न विद्वन् दुःख के (अध्वनः) मार्ग से (वितिर) पार होकर हमको भी पार कीजिये (अहं) रोगरूपी दुःखों के वेग को (विमुचः) दूर कीजिये (पुरः) पहिले (नः) हम लोगों को (प्रसक्ष्व) उत्तम-२ गुणों में प्रसक्त कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य, जैसे परमेश्वर की उपासना वा उसकी आज्ञा के पालन से सब दुःखों के पार प्राप्त होकर सब सुखों को प्राप्त करें इसी प्रकार धर्म्मात्मा सबके मित्र परोपकार करनेवाले विद्वानों के समीप वा उनके उपदेश से अविद्या जालरूपी मार्ग से पार होकर विद्यारूपी सूर्य्य को प्राप्त करें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(सम्) सम्यगर्थे (पूषन्) पोषकविद्यया पुष्टिकारक विद्वन्। पूषेति पदना०। निघं० ५।६। (अध्वनः) मार्गात् (तिर) पारं गच्छ (वि) विशेषार्थे (अंहः) दुःखरोगवेगम्। अत्र अमेर्हुक्च। उ० ४।२२०। चादसुन्। अनेन वेगो गृह्यते (विमुंचः) विमुंच (नपात्) न विद्यते पातो यस्य तत्सुंबुद्धो (सक्ष्व) सक्तो भव। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः इति दीर्घः। (देवः) दिव्यगुणसम्पन्न (प्र) प्रकृष्टार्थे (नः) अस्मान्। अत्र उपसर्गा#दनोत्परः। अ० ८।४।२७। अनेन णत्वम् (पुरः) पूर्वम् ॥१॥ #[उपसर्गाद्बहुल। सं०]

अन्वय:

प्रवसन्मार्गे किं किमेष्टव्यमित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे पूषन्नपाद्देव विद्वंस्त्वं दुःखस्याध्वनः पारं वितिर विशिष्टतया प्रापयांहो रोगदुःखवेगं विमुचो दूरीकुरु पुरः पूर्वं नोऽस्मान्प्रसक्ष्व सद्गुणेषु प्रसक्तान् कुरु ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यथा परमेश्वरस्योपासनेन तदाज्ञापालनेन च सर्वदुःखपारं गत्वा सर्वाणि सुखानि प्राप्तव्यान्येवं धार्मिकसर्वमित्रपरोपकर्तुर्विदुषः सान्निध्योपदेशाभ्यामविद्याजालमार्गस्य पारं गत्वा विद्याऽर्कः संप्राप्तव्यः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात पूषन शब्दाचे वर्णन, शक्ती वाढविणे, दुष्ट शत्रूंचे निवारण, संपूर्ण ऐश्वर्याची प्राप्ती, सुमार्गाने चालणे, बुद्धी, कर्माची वृद्धी असे केलेले आहे. यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची संगती पूर्व सूक्तार्थाबरोबर जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - माणसांनी जशी परमेश्वराची उपासना व त्याच्या आज्ञेचे पालन करून सर्व दुःखातून पार पडावे व सुख प्राप्त करावे. तसेच धर्मात्मा, सर्वांचे मित्र, परोपकार करणाऱ्या विद्वानाजवळ जाऊन त्याच्या उपदेशाने अविद्यारूपी जाळे पसरलेल्या मार्गातून पार पडून विद्यारूपी सूर्याला प्राप्त करावे. ॥ १ ॥